कैसे एक डाकू बन गया भारत का सबसे बड़ा रचेयता…
तो बात तब की है जब भगवान राम की लीला के गुण चारों तरफ गाए जाते थे। राम युग, जब हर कोई प्रेम से रहता था। तुलना तो यह तक होती है की शेर और बकरी एक ही घाट से पानी पीते थे। कहने सुनाने को बस ये कहानियाँ रह गई थी। अब न ही वैसे राजा रह गए थे न ही प्रजा।
ऐसे ही एक राज के राज मे एक बहुत खूंखार डाकू हुआ करता था। नाम था रत्नाकर। ऐसा डाकू जिससे न केवल आम जनता डरती थी बल्कि राजा भी भय खाता था। रत्नाकर एक जंगल में अपने साथियों के साथ छुप कर रहता था और जंगल से गुजरने वाले राहगीरों पर घात लगाए बैठता था। जो भी उस जंगल से गुजरता था वो या तो अपनी सारी पूंजी खो बैठता था या फिर अपनी जान।
ऐसे ही एक शाम उस जंगल से नारद मुनि को गुजरना था। ब्राह्मणो के मना करने के बावजुद उन्होंने वही जंगल का रास्ता चुन क्योंकि उन्हे गुरु वशिष्ट से जल्दी मिलना था। नारद जंगल के रस्ते से नारायण का नाम लेते हुए जा रहे थे। तभी उन्हे सामने से कुछ लोग बिना कपड़ो के भागते हुए आते दिखाई दिये। उन्होंने पूछा – क्या हुआ? तुम लोग इस हालत मे कैसे दौड़े आते हो?
उन लोगो ने नारद को बताया कि रास्ते मे उन्हे रत्नाकर ने लूट लिया। उन्होंने नारद को भी भागने की सलाह दी। इस पर नारद मुस्कुराए और आगे बढ़े।
कुछ दूर चलते ही उन्हे कुछ लोगो ने घेर लिया जिनके पास हथियार थे। उनमे से एक हट्टा- कट्टा आदमी आगे बढ़ा और नारद की गर्दन पर अपना हथियार रख कर बोला – ओ ब्राह्मण, क्या तुमने रत्नाकर के बारे मे नहीं सुना जो अकेले रात मे निर्भय होकर चले आते हो?
नारद- सुना तो था पर आज देख भी लिया। बात रही निर्भयता की तो हाँ मैं निर्भय हूँ। मुझे न प्राण का भय है न ही असफलता का । न कल का न ही कलंक का। क्या तुम निर्भय हो?
रत्नाकर- हाँ मैं भी निर्भय हूँ। मुझे भी न प्राण का भय है न ही असफलता का । न कल का न ही कलंक का। और किस भय को जानते हो तुम?
नारद- अगर तुम निर्भय हो तो तुम छुप कर क्यों रहते हो?
रत्नाकर कुछ नहीं कहता।
नारद- तुम पाप करते हो इसलिए डरते हो।
रत्नाकर- मैं पाप करता हूँ क्योंकि इस संसार ने मुझे पापी बन दिया। मैं भी राजा का एक ईमानदार सैनिक था। पर मुझे ऐसे पाप का जिम्मेदार ठहराया गया जो मैंने किया ही नहीं था और मुझे सेना से बेदखल कर दिया। यह संसार केवल बल की भाषा समझता है और मैं अब इसी भाषा मे इस से बात करता हूँ। आप जिसे पाप कहते हैं वह मेरा अपने परिवार के भरण पोषण का जरिया है।
नारद- तो फिर क्या तुम्हारा परिवार भी इस पाप मे तुम्हारा भागीदार है?
रत्नाकर- क्यों नहीं? मैं जो भी कमाता हूँ उन्हे देता हूँ तो वे भागीदार कैसे नहीं !
नारद- क्या वे इससे सहमत हैं?
रत्नाकर- क्या मतलब?
नारद- क्या तुमने अपने परिवार से पूछ है? पहले उनकी सहमति तो ले लो रत्नाकर।
रत्नाकर कुछ पल रुक कर अपना हथियार वापस नारद की गर्दन पर रख देता है।
रत्नाकर- मैं तुम्हे इसका उत्तर देना चाहूंगा। उसके बाद ही तुम्हे मारूंगा।
यह कह कर रत्नाकर अपने घर की तरफ चला जाता है। वह सबसे पहले अपनी पत्नी के पास जाकर पूछता है- मैं जो भी करता हूँ उसी से तुम्हारा भरण पोषण होता है। क्या इस पाप के काम मे तुम मेरी भागीदार हो?
पत्नी- मैंने अपके सुख दुख आपका साथ देने की कसम खाई है पर पाप मे नहीँ।
रत्नाकर भौंचक्का रह जाता है। उसने इस उत्तर की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं की थी। वह अपने पिता के पास जाता है।
रत्नाकर- पिता, क्या आप मेरे इस पाप मे हिस्सेदार हैं?
पिता- बेटा यह तो तुम्हारा कर्म है। मेरा इसमे कैसा हिस्सा!
रत्नाकर के पैरों तले मानो जमीन खिसक गई हो। वाह वापस जंगल क्या तरह चला जाता है। वह पहुँच कर उसे नारद अकेले एक पेड़ के नीचे बैठे दिखते हैं।
नारद- आ गए रत्नाकर। देखो तुम्हारे साथी मुझे छोड़ कर चले गए। उन्होंने भी गहराती रात के साथ तुम्हारा साथ छोड़ दिया।
रत्नाकर रोता हुआ नारद के पैरों मे गिर जाता है।
रत्नाकर- मुझे माफ करना मुनिवर। अब तो मैं भी अकेला रह गया हूँ।
नारद- नहीं रत्नाकर, तुम ही अपने मित्र तुम ही अपने शत्रु हो। अपने बीते कल की रचना तुमने की थी और आने वाले कल की रचना भी तुम ही करोगे। उठो और अपना भविष्य लिखो। राम नाम।
इस तरह रत्नाकर ने साधना कर राम के नाम को अपनाया और राम के संसार की रचना की जिसे हम रामायण के नाम से जानते हैं।